लिखो भारत
लिखो भारत
क्या......?
कब.......!
क्यों.......... ?
किस लिए......!
के प्रश्नों में,
क्यों सब उलझते हैं।
लिखावटों से ,
पीढ़ी दर पीढ़ी के,
सोपान जब बदलते हैं।
क्या लिखूँ.....
यह सोच कर,
कलम रूक न जाए।
वो लिखो ...
सोच जहाँ थम न जाए।
जिंदगी के सोपानों से होती हुई
क्षितिज तक ले जायें।
जिंदगी के तमाम पहलू,
लिखो।
कुछ आम,कुछ खास,
लिखो।
ईश्वर को,
अभार व्यक्त करते हुए।
जीवन की कहानी
लिखो।
वेदों की जीवन में,बहती रवानी।
लिखो।।
लिखो..........
मानवता सर्द क्यों हो गई है?
ईश्वर की बनाई
स्वर्ग रूप धरती को,
नरक में क्यों झोंक रही है।
लिखो..........
दिलों में अब,
प्रेम के बीज
अंकुरित क्यों होते नहीं?
मानवता अपने हाल पर।
क्यों.....
जार-जार रो रही है?
लिखो.........
हम क्यों अपनी ,
सभ्यता भूला गए?
हम तो.....
अंधविश्वासों से ,
लड़ने वाली सभ्यता हैं।
हम क्यों....
ढ़ोंगी बाबाओं के चक्रो में आ गए।
लिखो.......
जिस बेटी की,
आज़ादी के लिए लड़े थे।
आज बाहर,
कदम रखते ही उसपे क्यों
सवाल खड़े हैं?
लिखो......
जिंदगी क्यों.......!
भाग रही है।
मौत की तरफ।
क्यों हम,
लाशों के ढेर पर जी रहे हैं?
मानवता को सींचने वाले
प्रेम के रस में
क्यों हम ,
नफरतों का विष घोल रहे हैं।
लिखना और लिखते रहना।
ताकि.....
सारे न सही,
कुछ तो सही।
अपने अस्तित्व को पहचान सकें।
खुद से साक्षात्कार कर,
खुद को जान सकें।
मानवता के पथ को पा सकें।।