कृष्ण की गाथा
कृष्ण की गाथा
कंश की नगरी में रोहिणी नक्षत्र में जन्म जिन्होंने पाया था,
मामा कंश के अत्याचार को मिटाने ही वो धरती पर आया था,
देवकी व वासुदेव की आठवीं संतान थे जो मथुरा में जन्म पाया था,
लालन पालन हुआ गोकुल में जाकर यशोदा व नंदबाबा का प्यार पाया था,
गोकुल की शान थे जो गोकुल में माखन खुब चुराया था,
अपनी बाल-लीलाओं से पूरे गोकुल में प्रेम बरसाया था,
गोपियाँ थी जिनके प्रेम में दिवानी वो कृष्ण मुरली बजाते थे,
राधा भी थी जिनकी मूरली व प्रेम में दिवानी वो उन्हें दिल से रिझाते थे,
चाह तो थी राधाजी कृष्ण की वो प्रेम से मुरली उनके लिये बजाते थे,
बाकी गोपियों को भी वो मूरली की धून पर रास रचाते थे,
माखन मिश्री बहुत
था घर में पर वो चुरा कर ही खाते थे,
इसलिये तो कान्हा जी माखनचोर भी कहलाते है,
मारा था जिन्होने पूतना, कालियानाग और भी कई राक्षसों को अपने बाल्यकाल में,
इन्द्र देव के अहंकार को भी गोवर्धन पर्वत उंगली में धारण कर तोड़ा था,
जब हुये थे वे युवा तो भाई बलदाऊ के साथ गोकुल छोड़ा था,
आए थे अक्रूर जी के साथ पुनः मथुरा जो बचपन में काम अधूरा छोड़ा था,
मिले थे वे अपने माता पिता से जेल में आकर मामाजी को नही फिर उन्होने छोड़ा था,
कंश मामा के राज्य में जो बंदी थे उन्होंने उन सभी को छोड़ा था।
कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हम बनाते है कान्हा की याद में,
जबकि कान्हा जी तो बसे है हमारे हृदय और जीवन के अनुराग में।"