STORYMIRROR

Rajeev Upadhyay

Others

4  

Rajeev Upadhyay

Others

क्रान्ति का बिगुल

क्रान्ति का बिगुल

1 min
285

आज फिर से किसी ने

किसी नई क्रान्ति का

बिगुल फूँका नया है

देखते हैं

इस बार अंज़ाम क्या है?


क्या इस बार भी

सड़कें लाल होंगी

बस्तियाँ विरान होंगी

और लंगड़ाते बूढ़े

हथकड़ियों के पहलवाने होंगे?


हे क्रान्ति दूत!

तुमको क्या?

तुम हवन कुण्ड के पास

बैठ मंत्र पढ़ोगे

पर घर मेरा हवन में

आहुति देगा

और पड़ोसी कोई

सिन्दूर में धुलेगा

नन्हा कोई

माँ बगैर मरेगा।


हे अग्रपुरूष!

यज्ञ तुम्हारा कभी

कहाँ व्यर्थ हुआ है?

हर बार तुमको

पारितोषिक मिला है

पर मैं हर बार

बद से बदतर हुआ हूँ

सपनों के तेरे जहर से

मरता गया हूँ।


इस बार हो सके

तो माफ़ करना

लाशें अब

कम पड़ने लगी हैं

शिखर का नया

रास्ता तलाश करना।


Rate this content
Log in