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Rajeev Upadhyay

Others

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Rajeev Upadhyay

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तुम्हारी खुशबू

तुम्हारी खुशबू

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तुमने मुझसे 

वो हर छोटी-छोटी बात 

वो हर चाहत कही 

जो तुम चाहती थी 

कि तुम करो 

कि तुम जी सको 

पर शायद तुम को 

कहीं ना कहीं पता था 

कि तुमने अपनी चाहत की खुश्बू 

मुझ में डाल दी 

वैसे ही जैसे जीवन डाला था कभी 

कि मैं करूँ

और इस तरह 

शायद वायदा कर रहा था मैं तुमसे 

उस हर बात की 

जिससे जूझना था मुझे 

जहाँ तुम्हारा होना जरूरी था

पर तुम ना होगी 

ये जान कर शायद इसलिए 

तैयार कर रही थी मुझे। 


पर तब कहाँ समझ पाया 

कि माथे पर दिए चुम्बन 

बालों को मेरे सहलाने 

टकटकी लगा कर देखने का 

मतलब ये था 

कि हर शाम की सुबह नहीं होती

कि कुछ सुबहें कभी नहीं आतीं।



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