कोई इतना नहीं बलवान
कोई इतना नहीं बलवान
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धरती पर जब जब बढ़े
अपराध और अनाचार
तब तब मानवीय मूल्य
हुए एकदम से तार तार
पीड़ा हरण को अवतरित
हुए खुद जगत के आधार
नए विकल्प देकर उन्होंने
किया मानवता का उद्धार
विधि के नियम तोड़ सके
कोई इतना नहीं बलवान
बात अलग यह किसी को
हो खुद पर बड़ा अभिमान
जब रावण, कंस, बालि का
अभिमान हो गया चूर चूर
फिर कहां मायने रखता है
साधारण मनुष्य का गुरूर।