किस्सा
किस्सा
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पता नहीं कुछ अजीब सा रिश्ता हैं,
नाम नहीं पर ये कहानी का हिस्सा हैं,
साथ कभी भी थे ही नहीं,
पर ये इबादत का किस्सा हैं,
पता नहीं कुछ अजीब सा रिश्ता हैं,
चलते चलते इस सफर में,
हंसी खुशी लम्हों को जीते,
ये ना ख़त्म होने का किस्सा हैं,
पता नहीं कुछ अजीब सा रिश्ता हैं,
आते जाते हर मौसम में,
ये सुबह, शाम और रात का किस्सा हैं,
सब भूल जाए, पर वो याद का हिस्सा हैं।