किसको अपना गान सुनाऊँ
किसको अपना गान सुनाऊँ
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सब अपने में मस्त यहाँ हैं,
भारी श्रम कर पस्त यहाँ हैं,
ऐसे देशकाल में कैसे?
निज विचार बतलाऊँ।
किसको अपना गान सुनाऊँ?
सुनते भी हैं तो अपनों की,
बातें करें वृहत सपनों की,
निम्न स्वप्न गैरों को कैसे?
बार-बार जतलाऊँ।
किसको अपना गान सुनाऊँ?
निजी सभी की सोच अलग है,
मन भी उनका चपल विहग है,
मैं साधारण उनसे कैसे?
सरोकार रख पाऊँ।
किसको अपना गान सुनाऊँ?