खूंटे से बंधी गाय
खूंटे से बंधी गाय
खूंटे से बंधी गाय हूँ
मालिक के इशारों पर
घूमती- नाचती हूँ।
खूंटा ही मेरा ठौर है
तोड़ कर खूंटा
भाग नहीं सकती,
धमकाई-दुतकारी जाती हूँ
उसके दिए चारे पर जीती हूँ।
भागने पर समाज द्वारा
लांछित होती हूँ।
घुट घुट कर जीती हूँ
निरीह प्राणी हूँ।
वजूद खो चुकी हूँ
जीवन बोझ बन चुका है
बहुत मजबूर हूँ
प्रताड़ना सहकर भी
नरक सा जी कर भी
खुशी से जीती हूँ।
गर मिल जाता कभी
प्यार का दाना
तो भूल कर सभी दुख दर्द
फूली न समाती हूँ।
जीवन भर सिर्फ
देना ही सीखा है
लेने का नहीं हक मुझे।
मैं नारी हूँ मैं पत्नी हूँ
जग की सेविका हूँ
मैं परिचारिका हूँ,
क्योंकि मैं
खूंटे से बंधी गाय हूँ।