खून की होली
खून की होली
कौन करेगा मेरे भारत के टुकड़े ?
गर हिम्मत है तो आँख मिलाओ ,
यहाँ खड़ी भारत की बेटी ,
पहले उसके आगे शीश नवाओ।
शीश ज़िसका नवे माँ भारती के आगे ,
समझो उसके वारे - न्यारे ,
पर जिसने ऊँचा सर उठाया ,
उसने ही अपना शीश गँवाया।
जोड़ टुकड़े - टुकड़े मेरा भारत बना ,
फिर कैसे कर ली तुमने ये कल्पना ?
जो कभी मुफलिसी में भारत आये ,
आज इसी छत के नीचे अपना घर बसायें।
तोड़ अपनी ही छत हमें क्या मिलेगा ?
हर टुकड़े से केवल यहाँ लहू गिरेगा ,
जोड़ हर टुकड़ा हम आगे बढ़ेंगे ,
और ऊँची उड़ानों को पूरा करेंगे।
फिर भी गर कोई सोचता है ,
कि टुकड़े करेगा मेरे भारत के ,
इस खुली चुनौती को स्वीकार के ,
खेले खून की होली मेरे द्वार पे।
