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Praveen Gola

Others

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Praveen Gola

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खून की होली

खून की होली

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कौन करेगा मेरे भारत के टुकड़े ?

गर हिम्मत है तो आँख मिलाओ ,

यहाँ खड़ी भारत की बेटी ,

पहले उसके आगे शीश नवाओ।


शीश ज़िसका नवे माँ भारती के आगे ,

समझो उसके वारे - न्यारे ,

पर जिसने ऊँचा सर उठाया ,

उसने ही अपना शीश गँवाया।


जोड़ टुकड़े - टुकड़े मेरा भारत बना ,

फिर कैसे कर ली तुमने ये कल्पना ?

जो कभी मुफलिसी में भारत आये ,

आज इसी छत के नीचे अपना घर बसायें।


तोड़ अपनी ही छत हमें क्या मिलेगा ?

हर टुकड़े से केवल यहाँ लहू गिरेगा ,

जोड़ हर टुकड़ा हम आगे बढ़ेंगे ,

और ऊँची उड़ानों को पूरा करेंगे।


फिर भी गर कोई सोचता है ,

कि टुकड़े करेगा मेरे भारत के ,

इस खुली चुनौती को स्वीकार के ,

खेले खून की होली मेरे द्वार पे।



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