खुशियाँ बांटो
खुशियाँ बांटो
क्यूँ सबके मन को ताक रहे हो
और हाव-भाव भी भाँप रहे हो
पर यह बतलाओ मुझको तुम
क्या निज मन में तुम झाँक रहे हो
पर्वत- पर्वत और घाटी- घाटी
खुशियां तुमने कितनी बांटी
प्यार को ही पढ़ते-सुनते हो
और सदा इसे गुनगुनाया करते हो
पर यह बतलाओ मुझको तुम
क्या प्यार कभी तुम जी पाये हो
पर्वत -पर्वत और घाटी- घाटी
खुशियां तुमने कितनी बांटी
सत्य-अहिंसा की बातें करते हो
और सत्य का मार्ग दिखाते हो
पर यह बताओ मुझको तुम
क्या सत्य पर तुम चल पाये हो
पर्वत- पर्वत और घाटी- घाटी
खुशियां तुमने कितनी बांटी
कोना-कोना महकाते हो
उजड़े को तुम चमन बनाते हो
पर ये बतलाओ मुझको तुम
क्या मधुरस भी तुम ले पाये हो
पर्वत-पर्वत घाटी-घाटी
खुशियां तुमने कितनी बांटी।
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