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आकिब जावेद

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5.0  

आकिब जावेद

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खुदी को कर ले बुलंद

खुदी को कर ले बुलंद

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खुदी को कर ले बुलंद यूँ तमाम होने तक

ये रात बीत न जाए क़याम होने तक


मिली है आज ख़बर मुझको अपने होने की

ख़बर बदल ही न जाए हम-कलाम होने तक


जूनून ज़ज़्बो में मेरे अज़ीब जोश भरे

अहल-ए-दिल में यूँ हमको इत्माम होने तक


गुज़र रहा है ये सूरज गुरुर में अपने

पता नही उसको ढलना है शाम होने तक


क़मर को नाज़ है अपने हुश्न पे हो आकिब

ठहर भी जाइए मेरा भी नाम होने तक


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