STORYMIRROR

ख़तरा-ए-हुक्म सरकार

ख़तरा-ए-हुक्म सरकार

1 min
27.9K


मैंने छूकर देखा

पानी और ख़ुशबू को , वे अब भी पवित्र थे पूर्ववत

पवित्रता क़ायम-मुक़ाम थी अब भी शब्दों की

किन्तु फिर भी मुस्कुरा रहे थे बुद्ध

बुद्ध का मुस्कुराना तय कर रहा था बहुत कुछ

जैसे यही कि रंग-बिरंगी पतंगें उड़ती रहेंगी पूर्ववत

या कि फिर तितलियों तक को

उड़ान भरने से पहले लेना होगा पासपोर्ट

ख़तरा-ए-हुक्म सरकार तामील करो

कितना पास ? कितना पास ?

कितना दूर ?


Rate this content
Log in