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Nitish Kumar

Others

4.8  

Nitish Kumar

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ख़ामोशी है लबों पे क्यों ?

ख़ामोशी है लबों पे क्यों ?

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ख़ामोशी है लबों पे क्यों ?

ज़ेहन में ये कैसा तूफान है ?

बिखरे ये जो जमीं पर छूने से तेरे,

आईना टुटा, या टूटे मेरे अरमान है ?


दिल-ऐ-बर्बादी का है फिर शौक मुझे,

कँहा है वो कुचा, कौन सा तेरा मकान है ?


ये जो उठ रहा है धुआं दूर कंही,

कौन जला पता करो,

कंही घर तो नहीं मेरा

जो लग रहा शमशान है।


बहे जो अश्क़ रात भर किस की याद है,

ना रहा ईमान दिल का, जो भी है सब बेईमान है।


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