खामोशी...
खामोशी...
खामोशी है रात की..
खामोशी दिल में दबी बात की...
खमोशी जो आँसु बनके बह जाएगी..
खामोशी मौत का कफन बनके रह जाएगी..
ऐ खामोशी...तू मजबूर सी है..
ऐ खामोशी..तू मगरूर भी है...
कभी वादियों का सन्नटा है तुझमें ..
तो कभी सोच.की गहराईयाँ...
कभी तू ईबादत में शुमार है..
तो कभी अदब और लिहाज़ का खुमार है...
ऐक कशमकश है ..ऐक ठहराव है तू...
सुन्न पडे़ बदन की..कमी का ऐहसास है तू...
खूबसूरती में किसी की...खो जाऐं खामोशी से...
जाम पिया...और लड़खडाए यूँ कि बहक गऐ खामोशी से...
हर कलाम लिखते हैं खामोश होकर...
महफिल में शेर सुनते भी हैं खामोशी से..
अदरक वाली चाय के हर घुँट में है खामोशी सी...
कैद में है खामोशी भी...
तेरे अन्दर मेंं पनाह है मेरी...तन्हाई और ये खामोशी का एहसास...
उफ्फ गज़ब ढाए...और हो जाऐं बदहवास....
एक ऐहसास है..एक चुप्पी..एक ड़र है खामोशी
एक गहराई सी है...परछाई सी...शुन्य सी...खालीपन है खामोशी!
