कब
कब
कहते हम उसे जननी
कहते हम उसे बहन,
कहते हम उसे घरवाली
नाम अनेक हैं औरत के,
मगर क्यों जब
उसे मान देना का समय आता है
तो उसे जूते की नोक पर रखा जाता है?
औरत ही औरत की दुश्मन होती है,
क्यों हम अपने लड़को को यह सिखाते हैं कि
औरत तो जूती होती है,
एक औरत ही अपने बेटे को
औरत की इज़्ज़त करना सिखा सकती है।
औरत कभी दुर्गा है तो कभी काली
एक औरत ही संसार को चलाती है,
तो क्यों हम उसकी इज़्ज़त में
दाग लगाते हैं फिर उसे जला देते हैं,
तो कभी उसका गला काट मार देते हैं
क्यों हम उसकी इज़्ज़त नही करते?
क्या औरत का यह जुर्म है कि
उसने ऐसी औलाद पैदा की
जिसने एक दूसरी माँ की बेटी को जला कर मार दिया
कब मिलेगी आज़ादी, कब होगा फैसला ?
कब मिलेगा एक औरत को सम्मान
कब मिलेगा औरत को
आदमी जैसा अधिकार ?
लोग चले जाते हैं
दिन बीत जाते हैं
पर रह जाता है शब्द ,कब?
दुनिया प्रगति कर रही है
मगर आज भी हम पुरानी रीती मैं ही उलझे हुए हैं
और इंतज़ार कर रहे हैं कब आएगा वो समय
पीढ़ी दर पीढ़ी चली जाएगी
मगर रह जाएगा शब्द, कब?
