कैसा समय है ये
कैसा समय है ये


परिवार तो तब होते थे
दादी -चाची -ताई -बुआ
सब एक छत के नीचे
खाते थे, बतियाते थे
अब तो आलम ये है
माँ -बाप और बस एक संतान
उस पर हाय ये मोबाइल
आ गया रिश्तों के बीच
घर में तीन प्राणी, और
तीनो ही व्यस्त अपने फोन में
कैसा समय है ये
है ये कैसा लगाव
कहने को तो सारी दुनिया अपनी
पर सच में तो तन्हाई ही है अपनी
कहाँ खो गए वो रिश्ते
कहाँ खो गया वो प्यार
समय ने ली कैसी करवट
या हम ही अनदेखी करने लगे
रिश्तों में लगाव हुआ कम
ली 'मतलब' ने जगह
अब तो चेतो ! मानव !
क्या कम है ये
चिंतन के लिए वज़ह !!