कालरात्रि (7)
कालरात्रि (7)
हे आद्मशक्ति माँ जगदम्बे, हो गया हूं आ कर खड़ा द्वार पर तेरे
आभा दिव्य अभिनव जयोति की पा कर, आज पुलकित हो रहे प्राण मेरे
कामना मेरी यही है, सदा देश के काम मैं आऊं
चिर अमावस रात में भी, ज्योति जीवन की जलाऊं
मनुजता के कर्तव्य पथ में, हों क़दम गतिमान मेरे
सदा अर्धय चढ़ाता रहूं चरणों में तुम्हारे, होते रहें पुलकित प्राण मेरे
असुरों दानवों की दुर्भावना से, अजीवन लड़ता रहूं मैं
भारतीय संस्कृति की सनातन मूर्ति, आजीवन गढ़ता रहूं मैं
त्याग तप निष्ठा सृजन के, नित गीत गाता रहूं मैं
मृत्यु का पा कर निमंत्रण भी, शान से हंसता रहूं मैं
प्रज्ञा विवेक की गंगा में नहा कर, जी उठें नव प्राण मेरे
दिव्य अनुपम अलौकिक आलोक पा कर, हो जायें पुलकित प्राण मेरे
देख कर अन्याय देश में, मौन रहे न वाणी मेरी
आत्मबल टूटे न मेरा, रात्रि हो जितनी चाहे अंधेरी
सृष्टि रूठे प्रकृति रूठे, रूठें सभी प्यारे हमारे
हे आद्मशक्ति मां जगदम्बे, रूठना न आप बस हम हैं आपके सहारे
हे आद्मशक्ति माँ जगदम्बे, हो गया हूं आ कर खड़ा द्वार पर तेरे......
आभा दिव्य अभिनव ज्योति की पा कर आज पुलकित हो रहे प्राण मेरे..