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Vinay Panda

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जुल्मों-सितम

जुल्मों-सितम

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बस भी करो

बन्द करो अपना यह जुल्मो-सितम,

कब तक सहेगी दुनिया?

हक उसे भी है जीने का

अधिकार उसे भी है ,

आख़िर क्यूँ सहे वह सब

परेशान सी धनिया..!


होगा नहीं कुछ अब

तेरे अग्नि-परीक्षा से

कल की सीता नहीं वो

अब गीता बन चुकी है !


कब तक बने और

वह तेरे पैरों की जूती

देख खुद की वफ़ादारी से

सिर-मौर्य बनती जा रही है !



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