जुल्मों-सितम
जुल्मों-सितम
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बस भी करो
बन्द करो अपना यह जुल्मो-सितम,
कब तक सहेगी दुनिया?
हक उसे भी है जीने का
अधिकार उसे भी है ,
आख़िर क्यूँ सहे वह सब
परेशान सी धनिया..!
होगा नहीं कुछ अब
तेरे अग्नि-परीक्षा से
कल की सीता नहीं वो
अब गीता बन चुकी है !
कब तक बने और
वह तेरे पैरों की जूती
देख खुद की वफ़ादारी से
सिर-मौर्य बनती जा रही है !
