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Deepak Kumar jha

Others Children

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Deepak Kumar jha

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जिंदगी सचमुच किताब होती

जिंदगी सचमुच किताब होती

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काश, जिंदगी सचमुच किताब होती पढ़ सकता मैं कि आगे क्या होगा?

क्या पाऊँगा मैं और क्या दिल खोयेगा? 

कब थोड़ी खुशी मिलेगी, कब दिल रोयेगा?


 काश जिंदगी सचमुच किताब होती, फाड़ सकता मैं उन लम्हों को

जिन्होंने मुझे रुलाया है..

जोड़ता कुछ पन्ने जिनकी यादों ने मुझे

हँसाया है.....


खोया और कितना पाया है?

हिसाब तो लगा पाता कितना काश जिंदगी सचमुच किताब होती, 


वक्त से आँखें चुराकर पीछे चला जाता... 

टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता कुछ पल के लिये मैं भी मुस्कुराता, 

काश, जिंदगी सचमुच किताब होती।"


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