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Ruchika Rai

Others

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Ruchika Rai

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जिंदगी नही चाहती

जिंदगी नही चाहती

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कभी कभी बिना किसी प्रयोजन,

जिंदगी नही चाहती सुनना 

बाहर की रोक टोक।

बाहर के बेमतलब के शोर।

वह बस चाहती है सुनना,

मन के किसी कोने से उठती फुसफुसाहट,

उसमें सरगोशी करती इच्छाएँ।

कभी कभी जिंदगी में यह आस पलती है,

छोड़ दें मन में आस का पलना।

वह खत्म हो जाएंगी एक समय पर

थक हारकर

जब नही मिलेगा कोई सिरा सुलझाने को।

कभी कभो जिंदगी जीना चाहती है खुद को

बिना किसी तर्क पर

बिना किसी कसौटी पर

अपने ही शर्तों पर

जहाँ कोई उसे परखने की कोशिश न करें।

पर नही होता ऐसा

हर बार कुछ प्रश्न,कुछ भय, कुछ आँखें

सवाल करती हैं।

मापती हैं,

तौलती हैं,

निर्णायक बनती हैं।

इसके ऊपर परखती हैं बारीकी से

ढूँढती हैं कमियाँ,

और फिर प्रमाण पत्र मुहैया कराती हैं।

और तभी जिंदगी में जिंदगी को

जीने की चाहत कम होती जाती हैं।

यही सच हैं

तीखा कड़वा या फिर ह्रदय को छलनी करने वाला।


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