"ज़िन्दगी के नाटक मे"
"ज़िन्दगी के नाटक मे"
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हर कोई इस तरह रम गया है ,
मानो उसे भी ना पता कि वो कौन है।
बस दिखावे के चक्कर मे ,
दिखावटीपन की ज़िन्दगी जी रहा है।
असल ज़िन्दगी से वो खफा है ,
क्योकि अभी वो ज़िन्दगी के नाटक मे रमा है।
यहां किसी को नहीं पता कि,
कौन अपना है कौन पराया है।
हर कोई यहां अपनी मंजिल को पाने मे लगा है ,
असल ज़िन्दगी का तो उसे पता ही नही।
ज़िन्दगी के नाटक मे ,----
सभी ने झूठ का मुखौटा बखूबी पहना है।
हर कोई अपनी ज़िन्दगी से बेख़बर है ,
इस ज़िन्दगी के नाटक मे।