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Aarti Sirsat

Others

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जीने के सलीके

जीने के सलीके

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करता हैं नादानियाँ ऊँच नीच की

सिखाता हैं भेदभाव ना किया करो,

इंसान को भी जीने के सलीके

बड़े अजीब आते हैं ...!


एक गलती काफी हैं बरसों 

पुराने रिश्ते को तोड़ने के लिए

आओं ना हम इस टूटते रिश्ते

को फिर से सजाते हैं थोड़ा तुम 

थोड़ा हम झुक जाते हैं ...!!


बेदर्दी से तो बहुत सालों पहले 

ही मर चुका हैं वो रावण,

आओं ना हम मन के

भीतर के रावण को आज जलाते हैं ...!!!


क्यों घायल होते हो इन हसीनाओं

के काले बालों के बादलों से

आओं हम तुम्हें माँ के 

आँचल की छाँव दिखाते हैं ...!!!!


कभी तुमने तोड़ दिया

कभी हमनें जोड़ दिया

आओ ना इस रिश्ते को

हम एक साथ निभाते हैं ...!!!!!


कहीं अंधेरा हैं तो कही

जल रहे हैं घी के दीप,

आओ हम इन अंधेरी रातों में 

रोशनी के दीपक जलाते हैं ...!!!!!!


कब तक करते रहोगे

बचपन की वो बेअदब सी शैतानियाँ,

आओ हम तुम्हें समझदारी

का पाठ पढाते हैं ...!!!!!!!

       



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