. ‘जीने का सामां...’
. ‘जीने का सामां...’
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. ‘जीने का सामां...’
यूँ तो
सब कुछ
मिलता इस जहाँ में
लेकिन...
जिंदा रहने का
सामां नहीं मिलता
बेशक...
रोटी
कपड़ा
और मकान
जरूरी हैं जीने को
लेकिन...
इनमें जीवन का
सही अर्थ नहीं मिलता
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>कहते कि
साँसों से
धड़कन से
चलती हैं जिंदगी
लेकिन...
इनके न चलने से
आत्मा को फर्क नहीं पड़ता
फिर...
सब कुछ होकर भी
जब न हो सुकून
एक खला सीने में
हर पल करें रूह को बेचैन
तो लगता कि
काश...
पा सकते
उस अनश्वर को
जो अदृश्य मन को जिलाता ।।