जिदंगी का दस्तूर
जिदंगी का दस्तूर
जिंदगी का दस्तूर अलग है, एक हाथ से देना तो दूजे से हाथ से लेती है
शर्म-लिहाज न करती कभी भी, इम्तिहान जब-जब लेती है||
औकात, हैसियत धूल मिलाती, न संभलने का मौका देती है
धीरे-धीरे सब साथ छोड़ते, तजुर्बा ऐसा देती है||
आत्मीयता से जो जुड़े है तुमसे, करीब कर देती है
कमजोरियों से तुमको लड़ना सिखाती, बनने, विजेता का मौका देती है||
दाल काली या दाल में काला, देखने, झूठ-सच को देती है
राग, द्वेष हम जो देख न पाते, वही सबक ये देती है||
अनुभव देती बहुत है लेकिन, एक प्रश्नचिन्ह भी देती है
किसके लिए जी रहे थे अब तक, खुद की खातिर, फिर से जीने का मौका देती है||