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जग के बंधन तोड़ के आज

जग के बंधन तोड़ के आज

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जग के बंधन तोड़ के आज, मन से मन को मिल जाने दो।
हो जाए दो तन, एक मन, ऐसे खुद को घुल जाने दो।।
कुछ तेरे अरमां भी होंगे, कुछ मेरे अरमां भी हैं।
इन अरमानों की गुलशन में, दो फूलों को खिल जाने दो।।

बेचैनी नदियों को जितनी सागर से मिलने की है।
जितनी जल्दी रस कलियों का, भौरों को पीने की है।।
वर्षों की प्यासी धरती क्या कहती है अम्बर से देखो।
बरसों वरना मर जाऊंगी, अब चाहत जीने की है।।
         

                       


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