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Ervivek kumar Maurya

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Ervivek kumar Maurya

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जब तक तिरंगा न लहराउँ

जब तक तिरंगा न लहराउँ

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ऐसे कैसे दफन हो जाऊं?

जब तक तिरंगा न लहराऊँ

ये है अपना वतन है ये अपना चमन,

अपने वतन की पावन धरा को 

जब तलक अपने लहू से न रंग जाऊँ

बोलो कैसे दफ़न हो जाऊँ?


देखो कुर्बानियां उन शहीदों की

जो मिट गये अपने पावन धरा पर,

तिरंगे को कभी न झुकने दिया

अपने सर को उन्होंने कटवा दिया,

फिर कैसे भला मैं दुश्मन के सामने

सर झुका दूँ,

ऐसे कैसे दफ़न हो जाऊँ?


हे वतन में इतने गद्दार भरे

मक्कार भरे भ्रस्टाचारी भरे,

हे अपने माँ को जो बेच रहे

क्यों न उनको में सबक सिखाऊँ,

ऐसे कैसे दफ़न हो जाऊँ?


दुश्मन से हो जब मेरा सामना

उसको उसी के घर में धूल चटाऊं

लड़ते लड़ते वतन के लिए ग़र मर भी गया

तिरंगे के कफ़न में लिपटाया जाऊं,

फिर मैं ख़ुशी से दफन हो जाऊँ

ऐसे कैसे दफन हो जाऊँ?

जब तक अपना तिरंगा न लहराऊं।


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