इसी का नाम है नारी
इसी का नाम है नारी
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अपने -आप में,
एक सम्पूर्ण कहानी
इसी का नाम है नारी।
जीवन की संवेदना
मर्म की मूक निशानी,
भाव-मय ,ममता-मूरत,
समर्पित जीवन की रवानी,
इसी का नाम है नारी।
कितने रूपों में समा जाती
जीवन को स्वर्णिम कर जाती,
घर की परिकल्पना
तुम्हीं पर धरी जाती,
पूजित हर पल ,
हर कहीं जाती।
सृष्टि को सृजित कर जाती,
कुछ शब्दों में,
कैसे तोलू,
नपे- तुले शब्दों में,
कैसे बोलूं।
सिर्फ एक दिन तेरे नाम करूँ?
क्यों ईश्वर का गुनाहगार बनूँ।
तुम तो,
हर शब्द में हर दिन में,
हर -पल में समाती हो।
जीवन की परिपाटी,
अनुपम कल्पना।
इसी का नाम है नारी,
इसी का नाम है नारी।।
