इस दौर का चेहरा
इस दौर का चेहरा
इस दौर का चेहरा
जन ने करके लाख जतन जनतंत्र बुना।
प्रौढ़ हुआ - गूँगा हुआ - बहरा हुआ है।।
इस तरह इस दौर का चेहरा हुआ है।
आदमी : शतरंज का मोहरा हुआ है।।
कल तलक थी ज़िन्दगी मुस्कान माना।
ढो रहा अब आदमी दोहरा हुआ है।।
देश; वोटों की "बिना" पर बँट चुका अब।
धर्म था अंधा कुआँ -- गहरा हुआ है।।
हादसा कल हो चुका अब है मातम।
हाय मुस्तैदी ! कडा़ पहरा हुआ है।।
जन ने करके लाख जतन जनतंत्र बुना।
प्रौढ़ हुआ - गूँगा हुआ - बहरा हुआ है।।
क़द बराबर बढ़ रहा बे-ईमान का।
सहमा-सहमा सच वहीं ठहरा हुआ है।।
है अजब ये रीत "अनुपम " आज के इस दौर की।
शख़्स हरइक आईना और आईना : चेहरा हुआ है।।
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