" बापू -- बकरी और बंदर "
" बापू -- बकरी और बंदर "
" बापू -- बकरी और बंदर "
आज व्यवस्था " गूंगी " है
सत्ता .............." बहरी "
और न्याय ........."अंधा"
शायद ; आप जानते होंगे !
आजादी से पहिले;गुलाम भारत में
एक गाँधीजी रहा करते थे .........
: लोग उन्हें प्यार से, "बापू कहा करते थे".
बापू के पास एक अदद बकरी थी
और थे तीन प्यारे बंदर .
बकरी : रागात्मक थी
बन्दर : भावात्मक थे
वे जहाँ भी जाते; बकरी को साथ लिए जाते
बन्दर : खुद-ब-खुद; पीछे -पीछे चले आते
चारों को ही बापू ने बडे जतन से पाला
खुद बकरी का दूध पीया-बंदरों को सम्हाला
चरखा कातते रहे ......
अहिंसा बाँटते रहे.......
अंग्रेज -सरकार ; गांधीजी से बहुत घबराती थी
"गोल-गोलमेज"पर; टेढी-मेढी बातचीत के लिए
बार--बार बुलाती थी
लाठी--लंगोटी लेकर बापू ;"लंदन" तक जाते थे
नमक बनाते थे.........
राम-धुन गाते थे.......
बकरी से बापू ने सीखा -------
: कड़वा खा कर मीठा परोसना
मगर ; बंदर तो बंदर ही थे,जनाब !
उनका काम था ; परस्पर कोसना
बकरी पर बापू ने सारा स्नेह लुटाया
बंदरों को सामुहिक अनशन करना सिखाया
बकरी और बंदर मुस्तैद थे
अपने-अपने दायरे में कैद थे .
वक्तव्य -----( यह वह समय था ; जब देश स्वतंत्रता की अग्नि -परीक्षा से गुजर रहा था ।नेता; जनता के आदर्श हुआ करते थे , उनके इशारे --- मात्र पर जनता अपना सर्वस्य न्यौछावर करने हेतु तत्पर रहती थी।14-15 अगस्त 1947 की मध्य--रात्रि में आजादी का सूर्य उदित हुआ।राजनीतिक महत्वाकांक्षा और सत्ता -लिप्सा के बीच बापू की नृशंस हत्या कर दी गई। फिर; उस " बेचारी बकरी " और उन तीनों बंदरों का क्या हुआ ? जानना चाहेंगे आप!
एक लंगोटी--लाठीवाला ; बना भावना आजादी की ।कम पहनी पर रखी थी उसने ; सचमुच इज्जत खादी की।।आज सिल्क के सूट पहनकर;बगूले सारे इतराते |ये लोकतंत्र ! धृतराष्ट्र की सत्ता ; कौन सुने फरियादी की ।।
अब याद आया ; मैं किसकी बात कर रहा हूँ ?
माफ़ करना दोस्तों ! यही कहते हुए डर रहा हूँ
क्योंकि ;गांधी को तो हमने आजादी के साथ ही खो दिया
समूचा " गांधी --दर्शन "; आँसूओं में डुबो दिया
खुद "बकरी" को आत्मसात् किया................
,.,.........और बंदरों को कुर्सियों पर "बो" दिया.
आज व्यवस्था " गूंगी " है
सत्ता .............." बहरी "
और न्याय ........."अंधा"
बकरी : भूख़ से बे--हाल है
राजनीति है--- बंदरों का धंधा.
बापू के तीनों बंदर; आपस में मिल-जुलकर
भूखे भारत के पिचके पेट पर
विकास का सुनहरा नक्शा बनाते हैं
हकीकत के बदनुमा दाग मिटाते हैं
और ----------------------
चंदे की कमाई का ईमानदारी से बंटवारा कर
रातोंरात चमत्कारी बन जाते हैं .
बकरी ----------- अभाव में जीती है।
समभाव से ---------- दर्द पीती है ।।
(जनता का दर्द जनता ही जानती है
राज-नीति सिर्फ रोटियां सेंकती है)
वह देखती है;विकास की गंगा पर बनता हुआ
भ्रष्टाचार का बे----------- मिसाल : पुल
उखडी सड़क ------------- बिजली गुल
मुस्कुराता कौवा --------- उदास बुलबुल
बकरी की उम्मीदों की झोली ..................
" कल भी खाली थी --- आज भी रीती है "
: उदास लोकतंत्र की यही तो परिणिति है.
कि;अब यहाँ मूल्यों पर आधारित राजनीति नहीं होती
----------- : राजनेताओं के मूल्य तय हैं
सारी जनप्रतिनिधि-सभायें....................
.......................... राजनीतिक -- हरम हैं
इसीलिए तो बापू ! आज के नेता की कीमत
आपके बनाये हुए : नमक से भी कम है
(नेपथ्य से)...................................
" जब गुलामी गूंजती थी ; तब लहू का जोर था।
अब है पानी-धमनियों में;शोर है-कमजोर का।।
इस कदर मांझी; सफीने को, डुबोने पर तुले हैं ।
झुक गए मस्तूल--- तूफां भी उठा है जोर का।।
.
आज के दौर में ; बापू के तीनों बंदर
ग़जब का " सामन्जस्य" जी रहे हैं
बकरी को " साधन " मान कर
उसका लहू पी रहे हैं ...............
बकरी : दर्द से मिमियाती है
देश ---- भक्ति का राग गाती है
उसकी -- निरीहता-- सिध्द -- है
" बंदरों का न्याय भी तो प्रसिद्ध है".
मिमियाना ------बकरी का स्थाई भाव है ।
उद्दण्डता------- बंदरों का स्व-- भाव है ।।
परिदृश्य---------(तिरंगे में तीन रंग होते हैं । केसरिया--शौर्य का प्रतीक ; सफेद--शांति/अहिंसा का प्रतीक तथा हरा --समृध्दि और खुशहाली एवं"अशोक चक्र"-निरंतर विकास का प्रतीक एवं इसके एक ओर "घोडा"-- तेजी तथा दुसरी ओर " बैल "- कर्मठता/बल का प्रतीक )
देखिए ! -----------------------------
बापू के तीनों बंदर " तिरंगे के रंगों"से खेल रहे हैं
माँ-भारती को राजनीति के गहरे "दल--दल" में ढकेल रहे हैं .
"कामचोर बैल" और " निरंकुश घोड़े " के मध्य
शांति-पथ पर"प्रगति का चक्र";औंधे मुँह पडा है
हर बेईमान माथे पर ;"सत्यमेव जयते" जडा है
"गांधी " ! आज भी ; हर सड़क --- चौराहे पर
ला---- वा----रि----स ; तनहा खड़ा है.
बकरी................. बापू की दुहाई देती है
उद्दण्ड बंदरों के बीच ...........................
अनमनी--अभिशप्त अहिल्या--सी रहती है.
बंदर ----- निरंकुश हैं ; अपने-आप में खुश हैं
बंदर--सत्ता का और बकरी;जनता का प्रतीक है
शायद ! दोनों के लिए ही यह व्यवस्था
बढिया है --------------- ठीक है.
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