सन्नाटे की गूँज
सन्नाटे की गूँज
आखिरकार ईश्वर ने हमारी सुन ही ली
आज सुबह-सबेरे ही पत्नी बोली --
"ऐ जी! सुनो , मैं तो मायके चली
यहाँ तो तंग आ गई हूँ
कुछ दिन चैन से रहूँगी
हद होती है यार! कब तक सहूँगी ".
खुली जेल में
यह आजादी की पहली बयार थी
दोपहर तक
श्रीमती जी! सामान सहित तैयार थी
हमारा मन-मयूर नाच रहा था
पत्नी की हर भंगिमा जाँच रहा था
तभी उसने धमाका सा किया
एक कागज़, गोपनीय - पत्र सा
हमें थमा दिया
क्या करें? क्या न करें ?
कागज़ क्या था
दिशानिर्देश भरा फरमान था
पत्नी का जाना जितना सच था
आजादी का अहसास उतना ही बे- ईमान था.
"घड़ी का अलार्म सुबह छह पर है, उठ जाना
सात बजे नल चले जाऐंगे, जल्दी नहाना
फिर दूधवाला भईया आयेगा ;
दूध लेकर गरम कर लेना
दूध और गैस को भूल मत जाना
याद रखना ! सिर्फ़ अख़बार ही न पढ़ते रहना !
"ठीक आठ बजे कामवाली बाई आऐगी
कामचोर है, तुम्हें अकेला जानकर रिझाऐगी
मेरी कसम है ! उससे बचकर रहना
बेहतर होगा, उस दौरान
कुछ पूजा पाठ कर लेना."
"खाना तो बाहर ही खाओगे ?
मुझे पता है , फिर उसी जगह जाओगे ?
इससे बेहतर मौका कब मिलेगा ?
बुढ़ापा आ गया है !
ये सब आखिर कब तक चलेगा ? "
"अच्छा होगा, अगर रोज़ शाम, बिना काम
एक- एक करके पुराने दोस्तों के घर हो आना
देखो जी!
अपने ही घर में रोज ,महफिल मत जुटाना ."
यह उसकी सलाह थी या; मुझपर ऊलाहना
समझ सको यार ! तो ; मुझे भी समझाना .
मैं ; शांति से सब पढ़ सुन रहा था
तमाम झंझावतों के बीच ,
हसीन सपने बुन रहा था
पता नहीं क्यों ?
आज घड़ी भी कुछ धीमी चल रही थी
भाग्यवान ! तैयार तो थी;
पर बाहर नहीं निकल रही थी.
उसका भाषण जारी था
उफ़ ! समय भी कितना भारी था.
आखिरकार वह घड़ी भी आई
पत्नी को हमने दी भावभीनी बिदाई
उसकी आँखों में अविश्वास-सा झलक रहा था
शायद ! मेरा चेहरा, ख़ुशी के मारे
कुछ ज्यादा चमक रहा था.
गार्ड की पहली व्हिसिल के साथ;
उसने अंतिम बार चेताया
" याद रखना ! कुछ गड़बड न हो !!
जल्दी ही आ जाऊँगी
अपना ध्यान रखना ,रोज मुझे फोन करना .
मैं आज्ञाकारी सा सिर हिलाता रहा
गाडी अभी हिली भी न थी
बेवजह दोनों हाथ लहराता रहा .
आखिरकार राम-राम करके गाड़ी खुली
मैंने राहत की साँस ली
उड़ते - उडाते घर पहुँचा ;
मन को देता रहा धोखा.
सामने खाली पडा मकान मुँह चिढ़ा रहा था
हर बीता लमहा शिद्दत से याद आ रहा था
पत्नी की उपस्थिति से बढ़कर ,उसकी रिक्तता पसरी पड़ी थी
मैं वही था.... दीवारो-दर वही थे
लेकिन "घर " कहीं खो गया था.
धीमी चलती घडी,रुकी खडी थी
सन्नाटा चींख रहा था
तनहाई, बिखरी पड़ी थी.
हर औरत !
" अपने घर " की ज़रुरत होती है
हाँ ; ये सच है कि,
अपनी उपस्थिति में ही " वह "
अपना वुजूद खोती है
हाँ ! यही सच है
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