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Mani Loke

Tragedy

4  

Mani Loke

Tragedy

इंसानियत

इंसानियत

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इंसानों की भीड़ में देखो इंसानियत ही दब गई,

उठने को हुई ज़रा सी, तो कुचल दी गई।

मेहफिलें जमी कई, पर गैरत नही रही,

देखो इंसानों के भीड़ में इंसानियत दब गई,

राजनीति के खेल में मोहरे बने आवाम,

देखो ज़िन्दगी इंसान की सियासत ही बन गई।

मौत की सौदेबाज़ी तो अब देखो आम सी हो गयी।

रिश्वतखोरी और दगाबाज़ी अब जालसाज़ी हो गई,

मौत के सौदागर बने अब देखो पालनहार,

किस पर करूं यकीन, कौन देगा दगा ,

ये सोच सारे जहां की हो गई।

इंसानों की भीड़ में इंसानियत दब गई,

उठने को हुई ज़रा सी, तो कुचल दी गई।

दवाओं का हो ज़िक्र या किसानों का मामला,

पक्ष विपक्ष के खेल में जनता ही हार गई।

अब तो महामारी भी इंसानों की जालसाझी बन गई,

लोगों की ज़िंदगियाँ तो मुल्कों की बैर का शिकार हो गई।

इंसानों की भीड़ में इंसानियत दब गई,

उठने को हुई ज़रा सी, तो कुचल दी गई।




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