**इकरार के सिलसिले**
**इकरार के सिलसिले**
राह-हो -डगर या ख़ुदा,आँसा नही मंजिलें
खुद-ब-खुद कैसे पहुँचे,हम अपनी मंजिलें।
या कयामत आ गयी, या क़हर ढ़ा गए,
मोहब्बत-ए-जाम में बुलंद हो गए हौसले।
क़त्ल-ए-आम न हुआ,फिर भी जान चली गयी,
कैसे कहे अब हम की, उनसे ही जा मिले।
ज़न्नत सा हसी अब हर एक नजारा लगे,
बे मौसम बरसात हुई,बे मौसम ही गुल खिले।
जल उठे दिल के बुझते, वो तमाम दिए
तम अँधेरो मे भी हो गए,जैसे रोशन उजाले।
सोचा था गुजरना पड़ेगा,कांटो भरी राह से,
हो गए ख़त्म प्यार के,आख़िर वो फासले।
अब न कहेगी "नीतू" उन्हें,अजनबी -ए- दिल
चलते रहेंगे जनम-जनम ,इकरार के सिलसिले।
