"ईर्ष्या का त्याग"
"ईर्ष्या का त्याग"
मेरे जीवन में थी कई बुराई,
एक त्याग का संकल्प लिया!
सबसे बड़ी ईर्ष्या की आदत,
प्रण करके उसे छोड़ दिया!!
यदि हम कर ले कोई प्रण,
कुछ भी हम कर सकते हैं!
बार बार गिर पड़े भी तो,
पर्वत पर हम चढ़ सकते हैं!!
सत्पथ पर चलने को प्रण,
झूठ बोलना छोड़ दिया!
भूखे पेट हमें सोना पड़ा,
सच से न समझौता किया!!
मक्कारी चालाकी से कोई,
कुछ दिन सफल हो सकता है!
हम चलते सच राह पर नित,
सपनों को बल मिलता है!!
सत्पथ पर हम डटे रहें तो,
शत कंटक भी तो आएंगे!
हिम्मत करके उन्हें दूर कर,
हम आगे बढ़ते ही जाएंगे!!
छोड़ बुराई हम जीवन में,
नए स्वर का आह्वान करें!
धैर्य मनोबल की सीढ़ी चढ़,
जीवन में हम ख़ुशियाँ भरें!!
कोशिश करने वालों की ही,
होती निश्चित इक दिन जीत,
नव सृजन का हो जुनून तो,
हम रच देंगे सुंदर नव गीत।
