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Udbhrant Sharma

Others

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Udbhrant Sharma

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ईंट

ईंट

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मिट्टी को जल से गूँथ

और आग से तपाकर

परिपक्व हुई यह

और अब तैयार है

किसी मस्ज़िद के गुम्बद में

मन्दिर की नींव में

गिरिजाघर के फ़र्श पर या

गुरुद्वारे के ‘गुरु-स्तम्भ’ में लगने को,

होने सुशोभित

जीवन को पुण्य कार्य में व्यतीत करने

और सुधारने अपना परलोक

कौन जाने यह लग जाऐ

किसी कुएँ की बावड़ी

या नदी के घाट पर

या सार्वजनिक शौचालय में,

मजदूर की काल-ंकोठरी में

या कुबेर के महल में!

मान लीजिऐ

गाँव की कच्ची-ंपक्की सड़क पर यह

कीचड़ और धूल में लथपथ आपको दिखे

जहाँ से उठाकर आपका करोड़ या अरबपति ठेकेदार

इसका बना दे भविष्य

महानगरों को जोड़ते

सुदीर्घ राजमार्ग पर

सबसे अहम् सवाल तो यह है कि

इस पर बैठकर

अजान दी जाऐ या

खड़े होकर बजाई जाऐं

मन्दिर की घण्टियाँ?

गीता, क़ुरान,

ग्रन्थ साहब या

बाइबिल पढ़ी जाऐ,

अथवा सरकारी स्कूल की बेसिक रीडर?

किया जाऐ पेशाब या नहाया जाऐ;

मजदूर इसे तोड़ मिट्टी बनाकर

सड़क पर डाले या कुबेर इसे

बना दे सोने की

ईंट पर इस का

कोई असर नहीं तब तक

जब तक उसे

जवाब न मिले पत्थर का!

मगर मिट्टी तो होती है आहत।

अपने मूल स्वरूप में

उसकी शुचिता अखण्ड

उस का स्त्रीत्व अक्षत।


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