सूअर

सूअर

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मैंने देखा
एक सूअर।
जा रहा था
सड़क पर रफ़्ता-रफ़्ता
अपनी थूथनी उठाऐ।
मैंने सोचा
आख़िर क्या है
इसका अपराध?
क्यों लिया जन्म इसने
ऐसी योनि में
जो मारती है
गन्दगी में अपना मुँह?
विष्ठा देखते ही
उसकी भूख होती जवान,
कोई फर्क नहीं कर पाता जो
प्रकृति की
अपार सुन्दरता के समक्ष!
जिसमें
सौन्दर्य के
तथाकथित मानदण्डों पर
उतरने योग्य
कुछ भी नहीं!
क्यों लिया है उसने जन्म
और कितने दिन
इस दुनिया की घृणा
और नफ़रत को
झेलता रहेगा वह?
मैंने सोचा
और ध्यान से देखा
उसकी ओर:
उसकी आँखों में
अचानक मुझे
उसके भीतर से एक
निरीह,
सदय
और करुण आदमी
उभरता हुआ दिखा!
और ताज्जुब-
उसके नज़दीक खड़े
आदमी की
लपलपाती
क्षुधित आँखों के भीतर से
सिर को
हमलावर मुद्रा में
आगे की ओर सन्नद्ध किऐ
एक सूअर!

 


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