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Udbhrant Sharma

Others

4  

Udbhrant Sharma

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विचित्र आवाज़ें

विचित्र आवाज़ें

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बाज़ार से गुज़रते हुऐ
मैंने कुछ
विचित्र आवाज़ें सुनी
जैसे कुछ प्राणी
आपस में लड़ रहे हों
झपट रहे हों
एक-दूसरे पर
फाड़ खाने की मुद्रा में
ख़ून-ख़राबे की बातें भी
कि मैंने
ख़ून की
एक पतली-सी लकीर
सड़क पर देखी
बहते हुऐ
कुछ बच्चों की चीख़ें
कुछ औरतों की चिल्लाहटें
कुछ लोगों के
दम घुटने की आवाज़ें
यह सब सड़क के किनारे से लगी
चहारदीवारी के
उस पार का
क्रिया-व्यापार था
मुझे पता नहीं
उसे करनेवाले
कौन थे?
मगर अपने रास्ते पर
बढ़ते हुऐ भी
पिघले हुऐ शीशे की तरह
कुछ शब्द-युग्म
उतरते जा रहे थे
कानों में
मेरे न चाहने के बावजूद
मैं सरपट
भाग लिया वहाँ से
मगर असामाजिक आवाज़ों ने
और भी तेज़ी से पीछा किया मेरा
अन्ततः मेरी हत्या कर देने का
इरादा लिऐ!

 


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