हुस्न का इंकलाब
हुस्न का इंकलाब
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वो हुस्न भी क्या हुस्न है
जिसकी तारीफ़ कोई इश्क़ ना करे
मैंने ख़ुद से मोहब्बत कर ली।
रिवायत को रुसवा कर दी
अपने ही हुस्न पे जो छेड़ी ग़ज़ल
हंगामा सारे शहर में उठा।
हसीनों में उठा इंकलाब का नारा
इश्क़ की शहादत हो गयी!