तन्हाई
तन्हाई
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खुली हवाओं में तन्हा हम हैं
बंद कमरों में तन्हा हम हैं
बिखरा बिखरा सा मन है
हर दिशा में चंचल मन है
बेवफ़ा साये तो बेरहम हैं,
सिर्फ़ आँसू ही साथ हरदम है
डर है, ये भी रुठ जाएँगे,
लाख मनाने पर भी नहीं आएँगे
जैसे इन आँखों से नींद रुठी है,
सदियों से यहाँ नहीं लौटी है
अब बस, यह आँसू साथ निभाएँगे,
इनकी आदत सी हो गयी है
ये नहीं होते जिस रोज़,
ज़िंदगी में ज़िंदगी कुछ कम लगती है