बचपन
बचपन
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पीपल की छाँव थी
काग़ज़ की नाँव थी।
इमली चुराने के लिए,
हाथों की कटोरी थी।
कहानियों का पिटारा था
सहेलियों का अड्डा था।
गुड्डे-गुड़ियों की शादी में
मखाने की खीर थी।
खंडहर की भूलभुलईया थी,
लुका-छुपी की बाज़ी थी।
सुहाने पल की लड़ी थी
समय की किसको पड़ी थी?
अच्छाई की नीव थी,
बचपन की यही रीत थी।