मौत से गुफ़्तगू
मौत से गुफ़्तगू
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ज़िंदगी जिसे बोझ लगती थी
बेज़ार ज़िंदगी की दुहाई देती थी
जब मौत से गुफ़्तगू हुई
गवाही उसकी फ़रिश्तों ने दी
वक़्त की शाख़ लुप्त हुई,
साँसों की लड़ी टूट गयी
यादें उभर कर हावी हुईं
ज़िंदगी रिवाइंड मोड़ में गयी
मौत से नज़रें जब मिली
जीने की आरज़ू जाग उठी
आँसुओं से आँखें छलक गयी
कुछ लम्हों की मौहलत माँग बैठी,
अभी तो प्यार की ऋतु लहरायी थी
अभी तो ममता ने गले लगायी थी
ये सब देख, मौत मुस्कुरायी
बोली, अक़्ल तुम्हें थोड़ी देर से आयी