हसरतें
हसरतें
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हसरत थी की
तुम हमारे होते,
लेकिन ये हो
ना सका
तुम हमारे ना हुए
हम तुम्हारे ना हुए
हसरतों का पहाड़
क्यों खड़ा करता
इंसान जब वो
पूरे नहीं होते
हसरतों को ढोता
हुआ कब आगे बढ़ता है
कब ये हसरतें
किसी की पूरी होती हैं
जिसकी होती हैं
किस्मत वाले होते हैं
बाकि तो सब हसरतें
लेकर ही जीते हैं और मरते हैं
फिर भी हसरतें पालते हैं
हसरतों का होना भी जरूरी
जिनको पूरा करने के
लिए जीवन भर
संघर्ष करता हैं इंसान
यही हसरतें पूरी
होती हैं तो खुश होता हैं
नहीं तो हसरतें तो की
जाती ही पूरी करने के लिए
हो जाएँ तो खुश
नहीं तो दुःख तो हैं ही।