हरियाणवी तीर (कुण्डलिया छन्द)
हरियाणवी तीर (कुण्डलिया छन्द)
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बढ़णा के-के चाहिए, इस पै करो विचार
तनखा, लेबर, ज्ञान भी, सुण ल्यो रै सरकार!
सुण ल्यो रै सरकार, बढै न दाम अर मंदी
संस्था की गर फीस, बढै हो करणी गन्दी
सतविंदर अधिकार, गरीबां का भी पढ़णा
कटै न उनकी बेल, चाह री सै जो बढ़णा।
बढती फीसें जा रही, घटती शिक्षा रोज
मुश्किल या हल चाहती, कर ल्याओ रै खोज
कर ल्याओ रै खोज, दायरा और न बढ़ ज्या
प्रतिभा खर्चा झेल, न पावै बाहर कढ़ ज्या
सतविंदर सरकार, मिलै हक घल ज्या घी सें
अड़चन रही कसूत, जाण ल्यो बढ़ती फीसें।
