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सतविन्द्र कुमार राणा 'बाल'

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सतविन्द्र कुमार राणा 'बाल'

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दोहे

दोहे

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 शक्तिरूप! धर शक्ति तू, स्वयं बचा ले चीर।

 बस दुस्साशन घूमते, मिले न रक्षक वीर।।


दिल-दिल दलदल में धँसा, बहुत भयंकर रूप।

जन-जन के व्यवहार का, अनाचार है भूप।।


संबल खुद का जो रहा, उसकी सब पर जीत।

उसके साहस से हुआ, देखो भय भयभीत।।


दुबके नाहर मांद में, भारी पड़े सियार।

थर-थर थर-थर काँपते, जब भरता हुंकार।।


तेरे बस सम्मान को, माना जग ने मान।

कुचल रहा इस मान को, क्यों होकर अंजान।।



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