समाज के इन घरों को आखिर क्यूँ बाँँटते हो क्यूँ बाँटते हो। समाज के इन घरों को आखिर क्यूँ बाँँटते हो क्यूँ बाँटते हो।
छलकती है गगरी अधजल जब हो भरी न समझ तू ईश है मेरी समझ तू विष है! छलकती है गगरी अधजल जब हो भरी न समझ तू ईश है मेरी समझ तू विष है!