होली का नशा
होली का नशा
सुनो! सुनो ! सभी सुनो !!!
आ गयी है होली,
पहले था ये त्योहार,
प्यार का रंगों का,
आज है हम नशेड़ी,
भंगेड़ीयों का ...,
होती दो दिन की छुट्टी,
रहने, बिताने को परिवार,
संग लम्हें ख़ुशियों के,
हम तो ये सब भूल कर,
दारू ख़रीद लेते हैं,
दो की जगह चार दिन की,
खुद तो खूब पीते है,
साथ में शर्बत में मिला,
औरतों को भी,
पिलाते है ...
पी कर दारू,भांग,
हम वो उत्पात करते है,
जिसका कोई हिसाब नही ,
कई बार तो इतनी पी लेते है,
नाली की खुशबू,कुत्ते के स्पर्श,
किसी अपने का प्यार समझ लेते है,
पीने के बाद उनको भ ,
रंग लगाने छूने में कामयाबी,
मिल जाती है, जो सादे में नही,
कभी तो उन देवियों से,
मार खाते, बचने के लिये भागते,
होली है पीने, मस्ती का त्योहार,
.
एक होली पर खूब हुड़दंग कर,
शाम को घर पहुँच गये,
हमसे पहले हमारे काम पहुंच गये,
बस फिर क्या था,
पत्नी तो पहले से हमारे लिये,
कहाँ है ?? क्या खाया
इन बातों ने पारा उनका ,
बहुत चढ़ा दिया ....
फिर क्या था ...
खूब हुई मेरी धुलाई ...
खाने को भी कुछ नही मिला
बदन दर्द से टूट रहा था ...
अगले दिन होश आने पर ,
सारी बातें मालूम हुई,
तौबा करी ऐसी होली,
दोबारा नही खेलूँ ..
