रंग
रंग
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ऐ ज़िन्दगी कैसे कैसे रंग हैं तुझ में
कभी तू लगे मस्त रंगीली
कभी इतनी रंगीन की तुझे दिल में
आँखों में बसाने को जी चाहे
आँखों में समाते जाते हुए ही
क्यों तेरे रंग ऐसे बदल जाते हैं
जैसे
ज़िन्दगी में कोई रंग, मस्ती
कोई ख़्वाब, खुशी हैं ही नहीं
तू कैसे हर पल बदले "रंग "
ये हुनर मुझे भी सिखला दे
फिर ना तुझ से कोई गीला होगी
ना कोई शिकायत
मैं भी तेरे साथ हर समय
रंग मेरे बदलता रहूँ
ना होगी कोई शिकायत
