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Ajit Lekhwar jaunpuri

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Ajit Lekhwar jaunpuri

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हमको है मंजूर

हमको है मंजूर

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हमको है मंजूर अपना जिगर का लहू बांटना 

हम हैं रतजगे के आदी हम कैसे तेरा बिस्तर बांटें 

मेरी जां बांटनी ही है तो मेरी जां बांटिए 

हम कैसे अपनी आग बांटें  

किसी को कुछ ना देने वाला हूं फकीर मैं तो 

एक तू है कहने को मेरा फिर हम कैसे तेरी रात बांटें 

और भी तो मयखाने हैं शहर में तेरे सिवा 

जो मेरा है वो मेरा है हम कैसे तेरे लबों की शराब बांटें 

मारना ही है तो फिर ले आओ कभी हाथों में तेग अपनी 

यूं हर रोज टुकड़ों में अपनी कैसे जां बांटें 



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