कर रही हो इश्क़
कर रही हो इश्क़
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कर रही हो इश्क तो करो जी भर के
हटा कर ये वक़्त के पैमां जांना
देखती हो तुम जो मुझको यूं
तो देखती हो तुम क्या जांना
हो रही हो क्या तुम सर्फ मुझ में
तो कोई निशां ना बचे तुम में जांना
जाके मुझसे दूर जो आ रही हो तुम करीब जांना
आओ फिर यूं इस कदर
की कोई फासला ना रहे दरमिया जांना
खिला रही हो इस बस्ती ए बयाबान में कोई गुल तो
फिर खिलाओ इस कदर की
किसी मौसम का ना रहे मोहताज जांना
कर रही हो इश्क तो करो जी भर
हटा के वक़्त के पैमां जांना
यहां हर एक शख्स को है हमसे शिकायत जांना
गर तुमको नहीं है हमसे
तो फिर हमें तुमसे भी है शिकायत जांना
टूट रहीं हैं मेरी शाखे ए शजर एतिमाद की
तुम अब किसी और शाखे ए गुल पर कर लो घरौंदा जांना