हम क्यों अपने हाथ जलाएं
हम क्यों अपने हाथ जलाएं
गंदे मंसूबों के आगे,
क्यों कर अपना शीश झुकाएं।
उनकी हसरत बदला लेना,
हम क्यों अपने हाथ जलाएं।
लड़ने वाले कब माने हैं,
कब दुश्मनी मरा करती है।
दानवता ने जब जब आँखें,
खोली लाल हुई धरती है ।।
मानवता को हम क्यों भूलें,
हां में अपने हाथ उठाएं।
उनकी हसरत बदला लेना,
हम क्यों अपने हाथ जलाएं ।।
लोकतंत्र में हार जीत तो,
चलती आई सदा चलेगी ।
वोट नहीं जो देते हमको,
क्या उनकी बस्तियाँ जलेंगी।।
जीतने वाले सबके राजा,
हो जाते हैं भूल न जाएं ।
उनकी हसरत बदला लेना,
हम क्यों अपने हाथ जलाएं।।
राजनीति मज़हब की गंदी ,
सत्ता पाने को करते जो।
खून बहाते निर्दोषों का,
नहीं ख़ुदा से भी डरते जो।
उनके मंतव्यों को समझें,
हम क्यों तिल का ताड़ बनाएं।
उनकी हसरत बदला लेना ,
हम क्यों अपने हाथ जलाएं।।
होते हैं डरपोक बड़े ये ,
कब नेता लड़ने जाते हैं।
भड़का कर लोगों को केवल,
पका पकाया बस खाते हैं।।
कब इनके बेटे मरते हैं,
कर नाटक हमको भरमाएं।
उनकी हसरत बदला लेना,
हम क्यों अपने हाथ जलाएं।।
"अनंत"अपने कांधों का गर ,
कर उपयोग लोग सुख पाते ।
भ्रमित बुद्धि को अपनी करके,
उनके धन को और बढ़ाते ।।
बुद्धिमान क्या कहलाएंगे,
भीड़ बने हम उनकी गाएं ।
उनकी हसरत बदला लेना ,
हम क्यों अपने हाथ जलाएं ।।
