हे प्रभु मैंने तुम्हें कब बिसराया
हे प्रभु मैंने तुम्हें कब बिसराया
हे प्रभु मैंने तुम्हें कब बिसराया
सुबह हुई आंख खुली तुम्हें ही सिर नवाया
पूजा-पाठ अर्चना कर तुम्हें ही जल चढ़ाया
हे प्रभु मैंने तुम्हें कब बिसराया
जब जब मैं हार गया तुम्हें निर्दोष बताया
अपने कर्मों को दोष दे तुम्हारा ही गुण गाया
हे प्रभु मैंने तुम्हें कब बिसराया
जब जब खुशी का मौका आया फल फूलों से लाद दिया
अपने आप को तुच्छ समझ तुम्हें ही सारा श्रेय दिया
हे प्रभु मैंने तुम्हें कब बिसराया
सुख में दुख में हार जीत में हर पल तुम्हें ही ध्याया
सुबह शाम आठो पहर तुम्हारा ही ध्यान लगाया
हे प्रभु मैंने तुम्हें कब बिसराया
शादी ब्याह हो या कोई उत्सव
प्रथम निमंत्रण तुम ही ने पाया
रक्षा करो संपन्न करो प्रभु
यही भाव मन से गाया
हे प्रभु मैंने तुम्हें कब बिसराया
पढ़ते लिखते गाते खेलते प्रथम शीश तुम्हें ही नवाया
आना जाना शुभ करना यही गान हमेशा गाया
हे प्रभु मैंने तुम्हें कब बिसराया।
